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खग्रास चन्द्रग्रहण (7 सितम्बर, 2025 ई., रविवार)

04 Sep, 2025 by Himastro

यह ग्रहण भाद्रपद पूर्णिमा को 7 एवं 8 सितम्बर, 2025 ई. की मध्यगत रात्रि को सम्पूर्ण भारत में खग्रास रूप में दिखाई देगा। इस ग्रहण का स्पर्श मोक्षादि काल (भा.स्टैं.टा.) इस प्रकार होगा-
7/8 सितम्बर, 2025 ई. की मध्यगत रात्रि (भा.स्टैं.टा. अनुसार)
ग्रहण की अवधि = 3घ.29 मिं. ग्रासमान 1.362 प्रतिशत।

ग्रहण स्पर्श (प्रारम्भ).  9:57pm
खग्रास प्रारम्भ.            11:01pm
ग्रहण मध्य.                  11:42pm
खग्रास समाप्त           12:23am
ग्रहण समाप्त.               1:26am

भारत में जब 7 सितम्बर, 2025 ई. की रात्रि 9 बजकर, 57 मिनट पर चन्द्रग्रहण शुरु होगा अथवा 20घ.-58मि. पर चन्द्र मालिन्य आरम्भ होगा, उस समय से बहुत पहले ही सम्पूर्ण भारत में चन्द्र-उदय हो चुका होगा। भारत के सभी नगरों/ग्रामों में 7 सितम्बर को सायं 6:00 से 7:00 तक चन्द्रोदय हो जाएगा तथा यह खग्रास चन्द्रग्रहण 7 सितम्बर की रात्रि 21-57 मिं से प्रारम्भ होकर रात्रि 25-26 मिं. (अर्थात् 1 बजकर 26 मिनट) पर समाप्त (मोक्ष) होगा। भारत के सभी नगरों में इसका प्रारम्भ, मध्य तथा मोक्ष रूप देखा जा सकेगा।
इस ग्रहण में चन्द्रबिम्ब पश्चिम-दक्षिण की ओर से ग्रसित होकर उत्तर-पूर्व की ओर से मुक्त होगा।
ग्रहण का सूतक-
           इस ग्रहण का सूतक 7 सितम्बर, 2025 ई. को दोपहर 12घं.-57मिं. (भा.स्टें.टा.) पर प्रारम्भ हो जाएगा।

ग्रहण-काल तथा बाद में क्या करें-क्या करें ?

     ग्रहण के सूतक तथा ग्रहणकाल में स्नान, दान, जप-पाठ, मन्त्र, स्तोत्र-पाठ, मन्त्र-सिद्धि, तीर्थस्नान, ध्यान, हवनादि शुभ कृत्यों का सम्पादन करना कल्याणकारी होता है। धर्मनिष्ठ लोगों को ग्रहणकाल अथवा 7 सितम्बर को सूर्यास्त से पूर्व ही अपनी राश्यानुसार अन्न, जल, चावल, सफेद वस्त्र, फल (ऋतु अनुसार) आदि अथवा ब्राह्मण के परामर्शानुसार दान योग्य वस्तुओं का संग्रह करके संकल्प कर लेना चाहिए तथा अगले दिन 8 जुलाई को प्रातः सूर्योदय के समय पुनः स्नान करके संकल्पपूर्वक सामग्री/वस्तुएँ योग्य ब्राह्मण को दान देनी चाहिएं।

पुत्रजन्मनि यज्ञे तथा सङ्क्रमणे रवेः
राहोश्च दर्शने कार्यं प्रशस्तं नान्यथा निशि ।। (वसिष्ठ)

अर्थात् पुत्र की उत्पत्ति, यज्ञ, सूर्य-संक्रान्ति और सूर्य-चन्द्र के ग्रहण में रात्रि में भी स्नान करना चाहिए। सूतक एवं ग्रहण-काल में मूर्त्ति स्पर्श करना, अनावश्यक खाना-पीना, मैथुन, निद्रा, नाखुन-काटना, तैलाभ्यंग वर्जित है। झूट कपटादि, वृथा अलाप, मूत्र-पुरीषोत्सर्ग से परहेज़ करना चाहिए। वृद्ध, रोगी, बालक एवं गर्भवती स्त्रियों को यथानुकूल भोजन या दवाई आदि लेने में कोई दोष नहीं। गर्भवती महिलाओं को ग्रहणकाल में सब्ज़ी काटना, पापड़ सेंकना आदि उत्तेजित कार्यों से परहेज़ करना चाहिए तथा धार्मिक ग्रन्थ का पाठ करते हुए प्रसन्नचित्त रहे। इससे भावी सन्तति स्वस्थ एवं सद्गुणी होती है। हरिद्वार, प्रयाग, वाराणसी, अयोध्या आदि तीर्थों पर स्नानादि का विशेष माहात्म्य होगा।

ग्रहणस्पर्शकाले स्नानं मध्ये होमः सुराचर्नम्
श्राद्धं मुच्यमाने दां मुक्ते स्नानमिति क्रमः ।। (धर्मसिन्धुः)

अर्थात् ग्रहण में स्पर्श के समय स्नान, मध्य में होम और देवपूजन तथा ग्रहणमोक्ष के समय श्राद्ध और अन्न, वस्त्र, धनादि का दान और सर्वमुक्त होने पर स्नान करें-यह क्रम है।ग्रहण/सूतकाल से पहिले ही दूध/दही, आचार, चटनी, मुरब्बा में कुशातृण रख देना श्रेयस्कर होता है। इससे ये दूषित नहीं होते। सूखे खाद्य-पदार्थों में कुशा डालने कीआवश्यकता नहीं। ग्रहण का राशियों पर प्रभाव-यह खग्रास चन्द्रग्रहण पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र तथा कुम्भराशि में घटित हो रहा है। इसलिए इस राशि तथा नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को विशेष रूप से चन्द्र-राहु तथा राशिस्वामी शनि का जप, दान करना कल्याणकारी रहेगा।