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दुर्गा सप्तशती, जिसे देवी महात्म्य या चंडी पाठ भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र ग्रंथ है। यह पाठ देवी दुर्गा के महिमा, शक्ति और उनके भक्तों को दिए गए आशीर्वाद का वर्णन करता है। इसे नवरात्रि, विशेष पर्वों तथा अन्य शुभ अवसरों पर पढ़ा जाता है। इस ग्रंथ में 700 श्लोक होते हैं और यह मार्कंडेय पुराण का हिस्सा है।
दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले कुछ आवश्यक नियमों का पालन करना आवश्यक है। यह पाठ सात्विकता, श्रद्धा और भक्ति से किया जाना चाहिए।
1. पाठ से पूर्व की तैयारी
पाठ करने से पहले स्वच्छता का विशेष ध्यान दें। स्नान कर के शुद्ध वस्त्र धारण करें।
पूजा स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करें।
माँ दुर्गा की प्रतिमा या चित्र के समक्ष दीपक, अगरबत्ती और पुष्प अर्पित करें।
पाठ करने वाले व्यक्ति को सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
2. पाठ की विधि
सबसे पहले गणेश वंदना करें।
संकल्प लें और देवी माँ को प्रणाम करें।
सप्तशती पाठ को तीन खंडों में विभाजित किया जाता है:
प्रथम चरित्र (मधु-कैटभ वध)
द्वितीय चरित्र (महिषासुर वध)
तृतीय चरित्र (शुंभ-निशुंभ वध)
प्रत्येक अध्याय के अंत में आरती और देवी की स्तुति करें।
सप्तशती पाठ पूर्ण होने पर देवी कवच, अर्गला स्तोत्र और कीलक स्तोत्र का पाठ भी करें।
अंत में दुर्गा सप्तशती के फल श्रुति का पाठ करें और देवी से आशीर्वाद प्राप्त करें।
दुर्गा सप्तशती का पाठ न केवल आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है, बल्कि यह जीवन में सकारात्मकता, सुख-शांति और समृद्धि भी लाता है। इसके कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:
कष्टों से मुक्ति - यह पाठ नकारात्मक शक्तियों और विपत्तियों को दूर करता है।
मन की शांति - मानसिक तनाव, भय और चिंता से मुक्ति दिलाता है।
सकारात्मक ऊर्जा - घर एवं वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाता है।
विवाह और संतान सुख - जिन्हें विवाह या संतान सुख में बाधा आ रही हो, उन्हें विशेष रूप से यह पाठ करना चाहिए।
धन-समृद्धि - यह पाठ आर्थिक समस्याओं को दूर कर धन और समृद्धि को आकर्षित करता है।
रोगों से मुक्ति - स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में यह पाठ अत्यंत प्रभावी माना जाता है।
दुर्गा सप्तशती पाठ माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त करने का सर्वोत्तम उपाय है। यदि इसे विधिपूर्वक, श्रद्धा और नियमों के साथ किया जाए, तो यह न केवल भौतिक सुख-संपत्ति बल्कि आध्यात्मिक शांति भी प्रदान करता है। नवरात्रि, पूर्णिमा, अमावस्या तथा अन्य विशेष अवसरों पर इस पाठ का विशेष महत्व होता है। जो भी भक्त सच्चे मन से इस पाठ को करता है, उसे माँ दुर्गा की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।
जय माता दी!